व्यापार को राजनीतिक हथियार न बनाया जाय, ब्रिक्स की भूमिका अहम- भारतीय जानकार
चीन की मेजबानी में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन हो चुका है। इस दौरान चीनी राष्ट्रपति ने ब्रिक्स सदस्यों से साथ मिलकर वैश्विक सतत विकास को बढ़ाने की वकालत की। दुनिया के कई विशेषज्ञों ने चीन द्वारा प्रस्तुत की गयी पहल और आह्वान की प्रशंसा की है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति को सुधारने संबंधी बातों पर भी जोर दिया है। इस बारे में चाइना मीडिया ग्रुप के संवाददाता अनिल पांडेय ने बात की शांगहाई विश्वविद्यालय में कॉलेज ऑफ लिबरल आर्ट्स में एसोसिएट प्रोफेसर राजीव रंजन के साथ।
प्रो. राजीव कहते हैं कि जैसा कि हम जानते हैं कि आज के दौर में व्यापार को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। साल 2018 के बाद चीन और अमेरिका के बीच व्यापार के मुद्दे पर तनाव हो या फिर वर्तमान रूस-यूक्रेन संघर्ष, इनमें व्यापारिक प्रतिबंध आदि लगाए गए हैं। यह कहने में कोई दोराय नहीं कि व्यापार को कुछ देश एक उपकरण के तौर पर उपयोग कर रहे हैं। हमें यह भी समझना होगा कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि व्यापार को राजनीतिक उपकरण न बनाया जाय। ब्रिक्स के सदस्य देश इसमें बहुत अच्छी भूमिका अदा कर सकते हैं। ये राष्ट्र विभिन्न महाद्वीपों से आते हैं, ये पांचों देश अपना संयुक्त व्यापार समझौता लागू कर सकते हैं। इन्होंने मिलकर न्यू डिवेलपमेंट बैंक स्थापित किया है, जो इसका एक उदाहरण है।
साथ ही कहा कि हमें सप्लाई चेन को तोड़ने नहीं देना चाहिए। पिछले कुछ समय में कोरोना महामारी ने भी व्यापार के रास्ते में बाधा पैदा की है। जैसा कि चीनी राष्ट्रपति जोर देकर कह रहे हैं कि हमें साथ मिलकर वैश्विक सतत विकास को आगे बढ़ाना चाहिए। यह बात स्पष्ट है कि व्यापार विभिन्न देशों को करीब लाने में भी महत्वपूर्ण रोल निभाता है। लेकिन मेरा मानना है कि व्यापार को राजनीतिक हथियार के बजाय प्रभावी मैकेनिज्म की तरह काम में लाना होगा। भारत भी शायद यही कहना चाहता है कि व्यापार के माध्यम से हमें अपनी समस्याओं को सुलझाना चाहिए। अगर संबंधित सदस्य देश ऐसा करने में सफल रहे तो ब्रिक्स और मजबूत होगा।
पांचों देशों को मिलकर ब्रिक्स व्यवस्था को सही ढंग से सक्रिय करने की भी जरूरत है। क्योंकि ब्रिक्स विकास, सुरक्षा व राजनीतिक लिहाज से भी इन देशों में विश्वास पैदा कर सकता है। ऐसे में ब्रिक्स को ज्यादा अहम भूमिका निभाने की आवश्यकता नजर आती है। जैसा कि ब्रिक्स का मुख्य लक्ष्य भी है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं विश्व को एक वैकल्पिक माध्यम दे सकें। अब समय आ गया है कि ब्रिक्स को सिर्फ आर्थिक मॉडल तक सीमित न रहते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य आयामों में भी अपना दखल देना चाहिए।
23 और 24 जून को 14वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और वैश्विक विकास संबंधी उच्च स्तरीय वार्ता को लेकर राजीव रंजन कहते हैं कि ब्रिक्स अपने आप में एक बहुत बड़ा माध्यम है, जो एक ऐसा प्लेटफार्म प्रदान कर रहा है। जिसके तहत सदस्य देश बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा कर सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो अपेक्षाकृत छोटे संगठन बहुत अहम होते जा रहे हैं। इससे पता चलता है कि जो बड़े और नामी संगठन या मंच उस तरह से सफल नहीं हो पा रहे हैं, ऐसे में ब्रिक्स, एससीओ आदि को ज्यादा सक्रिय कार्य करते हुए जगह बनानी चाहिए। समय की मांग है कि इन्हें वैश्विक स्तर पर बढ़-चढ़कर अपनी बातें कहनी होंगी।
ब्रिक्स देशों के बीच वैश्विक खाद्य सुरक्षा व चुनौतियों को लेकर किस तरह से सहयोग हो सकता है, इस पर राजीव कहते हैं कि ब्रिक्स के लगभग देश कृषि से जुड़े हुए राष्ट्र हैं। जो कि दुनिया का एक तिहाई से अधिक कृषि उत्पादन करते हैं। भारत और चीन का उल्लेख करें तो ये आपस में इस विषय पर बहुत सहयोग कर सकते हैं। 2010 में ब्रिक्स देशों ने रूस में इस बाबत एक मसौदा भी तैयार किया था। हमने देखा है कि पड़ोसी देश श्रीलंका खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है। ऐसे में भारत को चाहिए कि वह कृषि के क्षेत्र में तकनीक का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करे, क्योंकि चीन ने हाल के वर्षों में इस बारे में काफी प्रगति की है। जिसके कारण चीन के कृषि उत्पादन में बहुत बढ़ोतरी दर्ज हुई है। आज के दौर में जलवायु परिवर्तन की चुनौती से समूचा विश्व परेशान है, आज हमें इससे निपटने संबंधी फसलें और उत्पादों को तैयार करना होगा।
इसके साथ ही आने वाले समय में कृषि सेक्टर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, इस पर विचार होना चाहिए। ताकि यह चौथी औद्योगिक क्रांति में अपना बड़ा योगदान दे सके। जो कि भविष्य के खाद्यान्न संकट से हमें बचाने का काम कर सकता है।
वहीं ब्रिक्स देशों को मानव प्रतिभाओं के आदान-प्रदान पर वीजा फ्री प्रकिया लागू करने की जरूरत है। ताकि इन देशों के प्रतिभाशाली लोग एक-दूसरे के यहां आसानी से आ-जा सकें और विकास में सहयोग दें।
प्रो. राजीव के मुताबिक विश्व में इस तरह की चर्चा है, जिसमें दूसरा शीत युद्ध होने की बात की जा रही है, जो कि पहले के मुकाबले अलग होगा। इसमें डिजिटल माध्यम की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होने वाली है। डिजिटल युद्ध का मतलब है प्रतिस्पर्धा से है, जिसमें हम इसमें प्रवेश भी कर चुके हैं। चीन और भारत जैसी उभरती शक्तियों का इसमें अहम रोल होने वाला है।
来源:国际在线CRIOnline